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रजोनिवृति का सिल बट्टे व आटा चक्की, योगासन व खानपान द्वारा घरेलू उपचार

रजोनिवृति का सिल बट्टे व आटा चक्की, योगासन व खानपान द्वारा घरेलू उपचार

 क्या है रजोनिवृति या मेनोपॉज ?

उम्र के साथ साथ महिलाओं में कई तरह के परिवर्तन होते हैं। 10-12 साल से महिलाओं में मासिक चक्र की शुरुआत हो जाती है जो 50 वर्ष चलता है। लेकिन 50 तक पहुँचते पहुँचते अंडाशय से अन्डो का निकलना बंद हो जाता है क्योकि गर्भाशय में एस्ट्रोजन और प्रोजेस्ट्रान नामक हार्मोन का निर्माण होना बंद हो जाता है। और मासिक चक्र स्थाई रूप से बंद हो जाता है तब महिलाओं कि उस अवस्था को रजोनिवृति या मेनोपॉज कहा जाता है। 

यह वह स्थिति होती है जब एक महिला कई तरह के शारीरिक और मानसिक बदलावों से गुजरती है। यह आपको चिडचिडा बना देती है और कई अन्य परेशानियों में भी डाल देती है। पर याद रखें कि यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया है। प्रत्येक महिला में इसकी उम्र निश्चित नहीं होती है, कुछ महिलाओं में 60 साल तक भी मासिक चक्र बंद नहीं होता जबकि कुछ में यह 40 तक पहुँचते ही हो जाता है। 


अगर आप 40वें दशक के अंतिम पड़ाव पर हैं तो रजोनिवृत्ति के लिए तैयार रहें। 40 की उम्र के बाद यह अवस्था सामान्य रूप से आ जाती है तो यह सामान्य शारीरिक प्रक्रिया कहलाती है लेकिन कुछ महिलाओं में कई बार कुछ समस्याएँ भी आ जाती हैं जिसके लिए उन्हें सर्जरी तक करानी पड़ जाती है।

रजोनिवृति का सिल बट्टे व आटा चक्की, योगासन व खानपान द्वारा घरेलू उपचार


यह एक सामान्य प्रक्रिया है जिससे होकर एक उम्र के बाद हर महिला को गुज़ारना पड़ता है। इस स्थिति के बाद समस्त प्रजनन क्रियाशीलता समाप्त हो जाती है । 


रजोनिवृत्ति के लक्षण

रजोनिवृति के दौरान महिलाओं के लक्षण, अनुभव और बीमारियां अलग-अलग होती हैं। कुछ महिलाओं में कोई लक्षण दिखाई नहीं देते, जबकि कुछ को शारीरिक और मानसिक विविध बीमारियां हो सकती हैं। 

इस दौरान जनन प्रक्रिया के आवश्यक हार्मोन में बदलाव होते हैं, जिससे मासिक धर्म में अनियमितता, प्रजनन क्षमता में कमी, वसोमोटर के लक्षण एवं अनिद्रा जैसी समस्या हो सकती है। स्वभाव में काफी तेज़ी से परिवर्तन होने लगता है 

  • काफी भूख लगना
  • कूल्हों की मांसपेशियों में दर्द
  • मूत्र निकासी के भाग में दर्द
  • भावनात्मक परेशानियां
  • मनोवैज्ञानिक समस्याएं
  • असुरक्षा की भावना
  • डर
  • स्तनों में सूजन
  • गुप्तांगों के बालों में कमी आना
  • स्तनों की त्वचा पर झुर्रियां
  • काम करते समय थक जाना
  • योनि में सूखापन
  • वज़न में बढ़ोत्तरी
  • थकान
  • चिडचिडापन
  • तनाव
  • अचानक तेज़ और टीस भरा दर्द उठना
  • गर्मी की वजह से अत्याधिक पसीना निकलना
  • कामोत्तेजना में कमी आना आदि।
  • मीनोपोज के बाद महिलाओं में हार्ट अटैक का खतरा बढ़व जाता है।
  • उच्च रक्तरचाप होना,
  • तनाव ग्रस्त होना, डिप्रेशन इत्यादि
  • लगातर मूड बदलना व थकावाट महसूस होना
  • याददाश्त कमजोर होना
  • जोड़ो में दर्द रहना या हड्डियों का कमजोर होना।


रजोनिवृति या मेनोपॉज का घरेलू उपचार

एक शोध में पेरीमेनोपॉज सिंड्रोम और मूड डिसआर्डर की गंभीरता से गुजर रही महिलाओं पर पड़ने वाले प्रभाव और खतरों का अध्ययन किया गया है। इन दोनों से उम्र, कब्ज, मेनुस्ट्रेशन, व्यक्तित्व की खासियतें और कामकाजी स्तर बेहद अहम भूमिका निभाते हैं। इसलिए इस हालात को गंभीरता से संभालना आवश्यक होता है। 

रजोनिवृत्ति होने पर तनाव न लेते हुए हर दिन व्यायाम करना और संतुलित भोजन खाना शुरू कर देना चाहिए। तो इसलिए आज हम जानने की कोशिश करेंगे की भारत के महान आयुर्वेदाचार्य वाग्भट्ट जी इस विषय में क्या कहते है ? 

साथ ही साथ आधुनिक विज्ञान के अनुसार इन लक्षणों से राहत पाने के लिए महिलाओं खान-पान और कामकाजी जीवन स्तर और योग आदि के बारे में जानेंगे। 


महर्षि वाग्भट्ट के अनुसार

महर्षि वाग्भट्ट कहते है की इस समस्या को खत्म तो नही किया जा सकता है लेकिन इसको नियत्रित किया जा सकता है। चक्की तथा सिलबट्टे के इस्तेमाल से इस समस्या को नियंत्रित किया जा सकता है। इसकी वजह से ही बच्चे को जन्म देते समय महिला को कम पीड़ा होती है। ग्रामीण इलाको में तो घर पर ही दाई माँ बच्चे का जन्म करवा कर चली जाती है।

दरसल इसमें होता ये है की गर्भाशय की प्रकृति है की इसके आसपास जितनी ज्यादा मूवमेंट होती है ये उतना ही मूलायम और मजबूत होता जाता है। इससे गर्भाशय का व्यायाम होता है। 

चक्की तथा सिलबट्टे के अन्य कुछ अद्भुत फायदे भी है जिसको जनना आपके लिए बहुत आवश्यक है। ये शरीर को निरोग रखनें और उम्र बढ़ाने में सहायक होती है। 

आटा चक्की व सिल बट्टा प्राचीन काल से ही भारतीय रसोई में सिल बट्टे और आटा चक्की का इस्तेमाल होता आया है। प्राचीन भारत के ऋषियों ने भोजन विज्ञान, माता और बहनों की स्वास्थ को ध्यान में रखते हुए सिल बट्टे और आटा चक्की का अविष्कार किया। यह तकनीक का विकास समाज की प्रगति और परियावरण की रक्षा को ध्यान में रखते हुए किया गया। आधुनिक काल में भी सिल बट्टे और आटा चक्की का प्रयोग बहुत लाभकारी है।

आटा चक्की के फायदे

आज मशीनीकरण ने महिलाओं के स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव डाला है। सुबह सुबह योग करते हुए हम आटा चक्की चलाने की सिर्फ एक्टिंग करते है और पेट , कमर की चर्बी कम होती हैं।

मासिक धर्म बंद होने के समय जो मुश्किले महिलाओ को आती है उसका उपचार चक्की चलाने से अपने आप हो जाता है। 

राजीव भाई ने एक रिसर्च किया चक्की पर अपने एक आयुर्वैदिक वैद्य मित्र के साथ मिलकर, उन्होने देखा जो माताए-बहने चक्की चलाती है उन्हे कभी भी आप्रेशन से डिलवरी की जरूरत नही पडी और उन्हे कभी घुटनो का दर्द नही हुआ, पैरों का दर्द नही, मोटापा नही है। 

इसका कारण ये है कि जब हम चक्की चलाते है तो सारा दबाव आपके पेट पर पडता है जिससे महिलाओ के गर्भाश्य का व्यायाम होता रहता है जिस्से इसकी मुलायमियत (flexibility) बढ़ जाती है , जिससे डिलवरी आसानी से होती है बिना आप्रेशन बिना दर्द के, आपने सुना ही होगा कि कई साल पहले आपकी दादी, नानी के जमाने में 8-10 बच्चे होते थे और वह भी गांव की दाई के द्वारा बिना आपरेशन के। 

इससे महिलाओ के गर्भाश्य का व्यायाम होता रहता है डिलवरी बिना आप्रेशन बिना दर्द के आसानी से होती है। कभी भी ऐसी महिलाओं का सिजेरियन डिलीवरी नहीं होती है। आपको शायद ये भी पता होगा सामान्य बच्चो की तुलना में जो बच्चे आप्रेशन से हो रहे है वो ज्यादा बीमार रह रहे है। 

ताजा आटा स्वस्थ के लिए बहुत लाभदायक है। आयुर्वैदाचार्य वागभट्ट जी कहते है कि पिसा हुआ गेंहू का आटा 15 दिन से पुराना नही खाना चाहिए, जवार बाजरा चने का आटा 7 दिन पुराना न खाए क्योकि इसके बाद इसमें पोषण कम होने लगता है। 

दिल स्वस्थ रहता है।

महिलाओं द्वारा आटा पीसने से शारीरिक कसरत भी जबरदस्त होती थी, जिससे पुराने जमाने की महिलाओं का स्वास्थ्य की तुलना में आधुनिक महिलाओं की तुलना बेहरत नहीं है।, आज विशेष तौर से नई पीढ़ी की अधिकांश महिलाएं कुंठा, तनाव सहित पेट की विभिन्न बीमारियों से पीड़ित है , इसका मुख्य कारण उनकी दिनचर्या अव्यवस्थित होना व शारीरिक श्रम नहीं होना है।

पुरुष भी अगर बढे हुए पेट को कम करना चाहते है तो हाथ की चक्की पर रोज़ थोड़ा आटा पिसे, आप अगर रोजाना 15-20 मिनट चक्की चला लेते है तो 3 महीने में आपका वजन कम हो जाएगा, पेट अन्दर चला जाएगा। 

ताजा आटा विटामिन बी और विटामिन ई से भरपूर होता है। ताजे पिसे हुए आटे में स्वास्थ्य से जुड़े फायदे तो मिलते ही हैं, इसका स्वाद व सुंगध भी बरकरार रहते हैं। 

इसके बने आटे में शरीर के लिए पोषण संबंधी सभी आवश्यक तत्व मौजूद रहते हैं। वैसे शरीर को अपना काम करने के लिए 49 पोषक तत्वों की रोजाना आवश्यकता होती है। बिजली की चक्की पर पिसता है जो बहुत तेजी से पिसता है । high speed के कारण चक्की गर्म हो जाती है। गर्मी की वजह से काफ़ी पोषक तत्व नष्ट हो जाते है। 

घर पर पिसे हुए आटे की रोटियों का आनंद ही कुछ और होता है। इससे परिवार की सेहत के साथ-साथ आत्मसंतुष्टि भी प्राप्त हो रही है। शुद्धता के मामले में घरेलू आटा चक्की का आटा शत प्रतिशत खरा होता है। और वैसे भी चक्की को घर में रखना शुभ माना जाता है, इससे घर के वास्तुदोष भी कम होते है ।

हाथ कि चक्की से हाथ से पिसे गए अनाज में चोकर ज्यादा रहता था लेकिन आजकल बिजली की चक्की से पिसे अनाज का आटा उपयोग में लिया जाता है, जो बहुत बारीक़ पिसा जाता है।

चोकरयुक्त आटे का लाभ

आपको चक्‍की का मोटा आटा खाना चाहिये क्‍योंकि उसमें चोकर होता है। आटे में चोकर होने की वजह से रोटियां भले ही थेाड़ी बेस्‍वाद लगे लेकिन वह इतनी पौष्‍टिक होती है कि आप सोंच भी नहीं सकते। 

चोकर युक्‍त आटा खाने से कब्‍ज नहीं होती है। पेट हमेशा साफ रहेगा तो आपको कोई बीमारी नहीं हो सकती। 

इसमें कैल्‍शियम, लोह, विटामिन बी आदि तत्‍व हेाते हैं जो शरीर में रक्‍त बढ़ाते हैं, हड्डियों को मजबूत बनाते हैं 

मोटापा घटाए मोटापा घटाए इसी रोटियां खाने से पेट पूरी तरह से भर जाता है।
अगर वजन कम कर रहे हों तो चोकर युक्‍त रोटियां ही खाएं। 

होती इसे खाने से आंतों की बीमारी नहीं होती है तथा यह बवासीर आदि रोगों को भी दूर कर देता है।
मशीन-चक्की से अनाज की पोषकता ख़त्म हो जाती है । जिससे आज की तमाम युवा पीढ़ी कमजोर होती जा रही है। 

कोलेस्‍ट्रॉल संतुलित करे कोलेस्‍ट्रॉल संतुलित है।

यह आमाशय के घाव ठीक करता है। 

हृदय रोगों और कोलेस्ट्रोल से भी शरीर की रक्षा करता है। 

इसे खाने से महिलाओं को गॉलस्‍टोन नहीं होता क्‍योंकि इसमें घुलनशील फाइबर हेाता है।

कुछ सावधानिय :-

कभी भी खाली गेंहूँ के आटे की रोटी ना खाए उसमें दो चार अनाज जैसे जौ , मक्का , बाजरा या चना आदि मिला लें । 

आयुर्वैद के अनुसार गर्भवती महिला 7वें महिने तक चक्की चला सकती है पर उसके बाद नही।
चक्की लेते वक़्त ज़्यादा मोल भाव ना करे। गरीब व्यक्ति को दान योग्य दान है जिसका लाभ मिलेगा

सिल बट्टा का के फायदे :

सिल बट्टा पत्थर की सिला का ही एक टुकड़ा होता है यानि यह पत्थर का ही बना होता है। इसलिए इसमें खनिजों की मात्रा का होना लाजमी है। इसमें पिसी हुई चटनी या मसाले शरीर को कई तरह की बिमारियों से बचाते है। पत्थरों से मिलनें वाले खनिज सीधे शरीर तक पहुंचता है। इससे शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है। जो शरीर को रोगो से दूर रखता है। सिल बट्टे से पिसा हुआ मसाले से बना भोजन का स्वाद सबसे उत्तम होता है। 

सिल बट्टे में मसाले पिसते वक्त जो व्यायाम होता है उससे पेट बाहर नही निकलता और जिम्नासियम का खर्चा बचता है। 

माताए और बहने जब सिल बट्टे का प्रयोग करते है तो उनके यूटेरस का व्यायाम होता है जिससे कभी सिजेरियन डिलीवरी नही होती, हमेशा नोर्मल डिलीवरी होती है। 

मोटापा कम करनें में सिलबट्टा एक उपयोगी मशीन की तरह काम करता है। इसका उपयोग करनें पर एक तरह का व्यायाम हो जाता है। जो सीधे पेट की अतिरिरक्त चर्बी को कम करता है। 

सिल बट्टे का प्रयोग करने से मिक्सर चलाने की बिजली का खर्चा भी बचता है। 

खान-पान के द्वारा उपचार चाय, कॉफी और मसालेदार आहार का सेवन कम करके, मेनोपोज़ की समस्या से निपटा जा सकता है। व्यायाम के द्वारा, आस्टिओपरोसिस की समस्या से कुछ हद तक निजात पाया जा सकता है।



सोया का सेवन सोया को टोफू या सोया मिल्क में आइसोफ्लैवोनेस पाया जाता है, जोकि एक फाइटोएस्ट्रोजन है। यह हॉर्मोन एस्ट्रोजन से काफी मिलता-जूलता होता है।



फाइटोएस्ट्रोजन्स युक्त खाद्य-पदार्थो का सेवन अलसी के बीज, सोयाबीन, अखरोट, साबुत अनाज जैसे- राई और जौ, इत्यादि के रूप में फाइटोएस्ट्रोजन भरपूर मात्रा में होता है। इन चीजों को अपने आहार में शामिल करने से मेनोपॉज की समस्या को प्राकृतिक तरीके से रोका जा सकता है।



विटामिन E का सेवन विटामिन E का सेवन करने से बहुत ज्यादा गर्मी लगना जैसी समस्या से राहत मिलती है। इसके अलावा विटामिन E युक्त तेल को योनि में लगाने से वैजाइना में सूखापन जैसी समस्या में भी काफी राहत मिलती है।


रजोनिवृत्ति की समस्या से बचने के लिए योगासन रजोनिवृत्ति या मेनोपॉज में होने वाली समस्याओं को योग द्वारा काफी हद तक दूर किया जा सकता है।

नींद में कमी, दर्द, चिड़चिड़ापन आदि मेनोपॉज के लक्षण हैं जो सामान्य रूप से लगभग हर महिला में दिखाई देते हैं अगर रजोनिवृत्ति के दौरान या बाद में नींद में कमी की शिकायत हो रही हो तो इसके लिए हस्तपादासन का अभ्यास किया जाना चाहिए।


इसके अलावा मसल्स पेन से बचने में शलभासन भी काफी मददगार होता है।


रजोनिवृत्ति के बाद होने वाली अधिकांश समस्याओं को मकरासन के द्वारा भी बेहतर किया जा सकता है।

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