हमारे पूर्वज ऋषि मुनि गहन शोध और जीवन परियन्त अध्ययन के बाद मानवजाति के कल्याण के लिए आयुर्वेद के रूप में अपनी विरासत छोड गये है। जिसके सहारे वे सौ सालो का लम्बा और निरोगी जीवन जीते थे। आयुर्वेद नियमो और सूत्रों के कई ग्रंथो को कहा जा सकता है। इन्ही नियमो में बताया गया है की कुछ ऐसे कार्य है जिनको न करे तो ही अच्छा, तो आज खान पान से सम्बन्धित कुछ ऐसे ही नियनो की बाप करेंगे।
भोजन के अंत में या बीच में पानी पीना विष पीने के बराबर है इसीलिए इस समय पेट भर पानी नही पीना चाहिए। 1-2 घूंट पानी पीया जा सकता है। इसके साथ ही भोजन के तुरंत चाय नहीं पीना चाहिए और न ही स्मोकिंग करनी चाहिए।
भोजन के तुरंत नींद से बचें, भोजन के बाद फल न खाएं, स्मोकिंग न करें, नहाना नहीं चाहिए, घुड़सवारी, दौड़ना, बैठना, या स्नान आदि नहीं करना चाहिए।
बज्रासन में बैठकर भोजन कभी न करे। भोजन सुखासन में ही करना चाहिए।
इसके अलावा आयुर्वेद के अनुसार खानपान से संबंधित अन्य महत्वपूर्ण नियम निम्नलिखित है-
शरीर के तापमान से बहुत कम और बहुत अधिक तापमान की वस्तु कभी न खाए। जैसे आइसक्रीम आदि।
उपवास या डायटिंग करके कभी भी वजन कम न करें क्यूंकि इससे शरीर में प्रोटीन बहुत कम हो जाती है। शरीर में जिसके कारण एक तरफ वजन कम होगा और दूसरी तरफ जिड़ो का दर्द बढ़ता जाएगा। क्षमता से थोड़ा कम तो खा सकते है लेकिन ज्यादा कम न खायें।
जो वस्तु देखने में खूब चमक रही हो या चिकनी हो, उसे कभी न खायें, जैसे साग, सब्जी, फल-फूल आदि। ऐसी वस्तुएं लाने के बाद सेंधा नमक डालकर उबालें और उबलें हुए पानी में (थोडा ठंडा होने के बाद) डाल दें, जिससे उसका जहर थोड़ा कम हो जायेगा।
रात्रि को दही, सत्तू, तिल एवं गरिष्ठ भोजन नहीं करना चाहिए।
दूध के साथ नमक, सिट्रिक एसिड वाली चीजे जैसे संतरा, नारंगी, मोसमी, निम्बू दही, खट्टे पदार्थ, मछली, कटहल का सेवन नहीं करना चाहिए। शहद व घी का समान मात्रा में सेवन नहीं करना
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