हिन्दू धर्म में लोटे का एक अलग ही महत्व है। लोटा धार्मिक कार्य व खान पान दोनों में इस्तेमाल होते है। आपने कई लोगों को लोटे में रखा पानी पीते देखा होगा। क्या आप जानते हैं लोटे में रखा पानी, स्वास्थ्य के लिहाज से बेहद फ़ायदेमंद होता है? इसके लिए सबसे पहले आपको पानी के सरफेस टेंशन का महत्व समझना होगा।
सरफेस टेंशन अधिक की कोई भी खाने या पीने की वस्तु स्वस्थ की दृष्टि से बहुत खराब होती है। क्योंकि इसमें शरीर को दबाव देने वाला अतिरिक्त दबाव इसके माध्यम से आता है।
कम सरफेस टेंशन का पानी बड़ी आंत और छोटी आंत के सरफेस टेंशन को कम कर देता है जिससे बड़ी आंत और छोटी आंत का मुह थोडा अधिक खुल जाता है जिसके कारण ज्यादा से ज्यादा कचरा इनसे बाहर यानि शरीर से बाहर निकल जाता है।
इसी के विपरीत ज्यादा सरफेस टेंशन का पानी पीने से आंतो का सरफेस टेंशन बढेगा जिसके कारण आँतें सिकुरेंगी और आंतो मे से कजरे की सफाई ठीक प्रकार से नही हो पायेगी। तनाव बढने से कोई भी चीज सिकुड़ती है और तनाव घटने से कोई भी चीज खुलती है। इसी कचरे के कारण शरीर में मूलव्याध, भगन्दर जैसे रोग की स्थिति ज्यादा बढती है।
लोटा बनाने के लिए ज्यादातर तांबे का इस्तेमाल किया जाता था। यदि तांबे के पात्र में रखा पानी कुछ अशुद्ध है तो यह कुछ घंटो में पानी के साथ प्रतिक्रिया करके शुद्ध हो जाता है।
कम सरफेस टेंशन (लोटे) का महत्व
गिलास भारत का नही है। गिलास यूरोप से आया है और यूरोप में पुर्तगाल से आया है। भारत का लोटा है। लोटा जो गोल आकार में होता है। लोटा कभी भी एक रेखिय नही होता है। एक रेखिय बर्तन अच्छे नही होते है। लोटे में पानी रखने से पात्र का गुण पानी में आ जाता है। हर गोल चीज का सरफेस टेंशन कम है क्योंकि गोल वस्तु का सर्फेस एरिया कम है। अतः पानी का भी सरफेस टेंशन गोल वस्तु यानि लोटे जैसी आकार की वस्तु में कम होगा।सरफेस टेंशन अधिक की कोई भी खाने या पीने की वस्तु स्वस्थ की दृष्टि से बहुत खराब होती है। क्योंकि इसमें शरीर को दबाव देने वाला अतिरिक्त दबाव इसके माध्यम से आता है।
ये है लोटे के फायदे
पानी का सबसे बड़ा गुण है सफाई करना। अधिक सरफेस टेंशन का पानी बड़ी आँत और छोटी आँत की सफाई अच्छी तरह नही कर पता है।कम सरफेस टेंशन का पानी बड़ी आंत और छोटी आंत के सरफेस टेंशन को कम कर देता है जिससे बड़ी आंत और छोटी आंत का मुह थोडा अधिक खुल जाता है जिसके कारण ज्यादा से ज्यादा कचरा इनसे बाहर यानि शरीर से बाहर निकल जाता है।
इसी के विपरीत ज्यादा सरफेस टेंशन का पानी पीने से आंतो का सरफेस टेंशन बढेगा जिसके कारण आँतें सिकुरेंगी और आंतो मे से कजरे की सफाई ठीक प्रकार से नही हो पायेगी। तनाव बढने से कोई भी चीज सिकुड़ती है और तनाव घटने से कोई भी चीज खुलती है। इसी कचरे के कारण शरीर में मूलव्याध, भगन्दर जैसे रोग की स्थिति ज्यादा बढती है।
लोटा बनाने के लिए ज्यादातर तांबे का इस्तेमाल किया जाता था। यदि तांबे के पात्र में रखा पानी कुछ अशुद्ध है तो यह कुछ घंटो में पानी के साथ प्रतिक्रिया करके शुद्ध हो जाता है।
साथ ही तांबा के बर्तन में रखा जाने वाला पानी रासायनिक प्रतिक्रिया करके जीवाणुनाशक बन जाता है। यह पानी स्वास्थ्य के अत्यंत लाभकारी होता है। यह पानी रक्त को शुद्ध करता है, पाचन तंत्र सुदृढ़ करता है।
यह बाते है याद रखने योग्य
- इसीलिए हमेशा गोल वस्तुओं में रखा पानी पीना चाहिए। क्योंकि सभी गोल चीजों में रखा हुआ पानी सर्वोत्तम होता है। चाहे वह लोटा, कुआँ , तालाब, पोखर का ही पानी क्यों न हो। ज्यादा खराब पानी समुद्र का है।
- बारिश का पानी गोल होकर ही नीचे आता है इनका सरफेस टेंशन कम होता है।
- ठण्डे पानी का सरफेस टेंशन बढ़ा हुआ होता है। और गुनगुने पानी का सरफेस टेंशन कम होता है।
- बीमार लोगो को पानी हमेशा गरम ही पीना चाहिए। किसी भी बर्तन मे रखने से पहले पानी को गरम करके उसे ठंडे करना चाहिए।

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