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मोक्ष प्राप्त करने का ये है सबसे सरल मार्ग (आयुर्वेद के अनुसार)

मोक्ष प्राप्त करने का ये है सबसे सरल मार्ग (आयुर्वेद के अनुसार)

आज हम आयुर्वेद के सबसे प्रभावशाली शास्त्रीय लेखकों में से एक वाग्भट के अनुसार मोक्ष प्राप्त करने के मार्ग के बारे में जानेंगे। आपको जानकर आश्चर्य होगा की वाग्भट जी ने मोक्ष को प्राप्त करने का बिलकुल ही सरल और आसाम मार्ग बताया है। मोक्ष के लिए हिमालय में जाके तपस्या करने की या घर परिवार छोड़ने, साधू-संत बन जाने की जरूरत नही है।


मोक्ष प्राप्त करने का ये है सबसे सरल मार्ग (आयुर्वेद के अनुसार)


मोक्ष क्या है?

जीवन मरण के चक्र से मुक्त होकर आत्मा का परमात्मा में विलेय अर्थात पूर्ण सुख को प्राप्त करना अथवा पूर्ण सत्य को जानना ही मोक्ष और निर्वाण है। भारतीय जीवन दर्शन के अनुसार जीवन के चार उद्देश्य या पड़ाव बताए गये है वे इस प्रकार है:-
  • धर्म
  • अर्थ
  • काम
  • मोक्ष
इसमें मोक्ष सबसे महत्वपूर्ण है। मानव जीवन का उद्देश्य ही मोक्ष को प्राप्त करना है। पूर्व जन्मो के सत कर्म के कारण ही मनुष्य शरीर मिलता है और इस जीव जगत में केवल मनुष्य शरीर ही मोक्ष धारण करता है। अर्थात जीव-जन्तु, कीड़े-मकोड़ों में मोक्ष की स्थिति नही आती है।

मोक्ष प्राप्ति का मार्ग

जो मनुष्य अपनी दुखों को दूर कर ले और दुसरो का दुःख दूर करने के लिए सतत प्रयास करे, वही मोक्ष का अधिकारी है। इसमें सफलता मिले या न मिले ये महत्वपूर्ण नही है। ईमानदारी से प्रयास करे, ये ज्यादा महत्व पूर्ण है।
तीन तरह के दुःख पूरी दुनियाँ में बताए गये है। 

  • दैहिक दुःख (शरीर का दुःख)
  • दैविक दुःख (भगवान का दिया हुआ दुःख)
  • भौतिक दुःख (गरीबी का दुःख)

जो व्यक्ति इन तीनो दुखो से मुक्त है और दुसरो को भी मुक्त करवाने के प्रयास में रत है, वही व्यक्ति मोक्ष का अधिकारी है। 

दैहिक दुःख (शरीर का दुःख)

शरीर के दुःख को दूर करने की सबसे बड़ी भूमिका पेट ही होती है। 90 प्रतिशत दैहिक दुःख पेट से सम्बन्धित है। 10 प्रतिशत दुःख ही पेट के अतिरिक्त होते है। इसलिए सबसे ज्यादा ध्यान पेट का रखना चाहिए। ये 90 प्रतिशत बीमारियों की संख्या 148 है। शरीर का दुःख को दूर करने के लिए आयुर्वेद और योग आधारित जीवन सैली अपनाना अति आवश्यक है। 

दैविक दुःख (भगवान का दिया हुआ दुःख)

भारत के शास्त्रों के अनुसार भारत में या इसकी सभ्यता संस्कृति में सभी लोगो का कर्म, मोक्ष की प्राप्ति के उद्देश्य से होता है अर्थात सभी पर्व, उत्सव, क्रिया-कलाप आदि मोक्ष प्राप्ति के उद्देश्य से किये जाते है। 

क्या आपने कभी सोचा है, सिख, जैन, बोद्ध और हिन्दू सभी भारतीय धर्मो में कुछ मूल्य कुछ आदर्शो को श्रेस्ता दी जाती है, जैसे सिख धर्म में सेवा को, जैन धर्म में त्याग को बोद्ध धर्म मे अहिंसा को श्रेस्ता दि जाती है, क्योंकि एकमात्र हमारे कर्म ही है जिसके द्वारा दैविक दुःख से बचा जा सकता है। प्यासे को पानी पिलाना और भूखे को रोटी खिलाना बहुत बड़ा धर्म का काम है। 

भौतिक दुःख (गरीबी का दुःख)

  • अब हम आत्यात्मिकता से राष्ट्रीयता की ओर आते है। अपने खून-पसीने की कमाई को सोच-विचार कर खर्च करें क्योंकि आप गरीब होंगे हो देश भी गरीब होगा। खर्चो पर नियंत्रण नही होने की वजह से अमेरीका जैसा देश चीन का कर्जदार है।

  • अतः खर्च कम करें, वचत ज्यदा करें। क्योंकि आपके द्वारा बचाया हुआ पैसा देश को परोक्ष रूप से काम आयेगा अर्थात उतना पैसा वह बाहर से कर्ज नही लेगा, आप से लेकर काम चलाएंगे।

  • ज्यादा से ज्यादा प्राकृतिक चीजों का प्रयोग करें। भारत के सभी लोग समृद्धशाली हों।

  • एक व्यक्ति ठीक होने के बाद दुसरे को ठीक करे।

  • बेकार की वस्तुएं घर न लायें।

  • अपने आस-पास बनने वाली वस्तुओं का ही प्रयोग करें।

  • जिनकी आर्थिक स्थिति मजबूत नही होनी है। उनकी राजनैतिक स्थिति भी कमजोर होती है और जिनकी राजनैतिक स्थिति मजबूत नही होती उनका धर्म भी सुरक्षित नही होता है। संस्कृति और सभ्यता भी सुरक्षित नहीं रह सकती है।

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