तेल खाद्य सामग्री का एक अभिन्न अंग है। एक ओर जहाँ तेल से अद्भुत स्वस्थ लाभ मिलता है वही दूसरी ओर अगर तेल खाने के कुछ जरूरी नियमों के पालन नहीं किया गया तो यह जानलेवा बीमारियों का कारण भी बनता है। आज हम जानने की कोशिश करेंगे कि बाजार में बड़ी तादाद में उपलब्ध विभिन्न कुकिंग ऑयल्स में से कौन सा स्वास्थ्य के लिए वरदान है और कौन सा जहर के समान है।
रिफाइंड तेल पिछले 20-25 वर्षो पहले से आये हैं। रिफाइंड, डबल रिफाइंड, ट्रिपल रिफाइंड तेल खाना जहर खाने के बराबर है। तेल को रिफाइंड करते समय तेल की चिकनाई निकाल ली जाती है। वैज्ञानिकों के अनुसार तेल का चिपचिपापन तेल का सबसे महत्वपूर्ण घटक है। जिस तेल में चिपचिपापन नहीं होता है, वह तेल नहीं होता है।
चिकनाई खायें लेकिन देख कर खायें कि कौन सी खाने लायक है और कौन सी खाने लायक नहीं है। चिकनाई दो प्रकार की होती है, एक अच्छी और एक बुरी। अच्छी चिकनाई ज्यादा खायें। अच्छी चिकनाई शरीर में HDL बढाती है। जो बुरी चिकनाई है वह बढाती है LDL और VLDL, ये खतरना है। अच्छी चिकनाई नहीं खाने से शरीर चूसे हुए आम की तरह हो जाता है। चिकनाई नहीं खाने से शरीर की चमक चली जाती है। शुद्ध तेल में अच्छी चिकनाई मिलती है।
तेल की चिकनाई जब एक बार निकल जाती है तो वह रिफाइंड तेल होता है। दो बार निकालने पर डबल और तीन बार निकलने पर ट्रिपल हो जाता है।
इसके अलावा तेल को 200 डिग्री से 225 डिग्री पर आधे घंटे तक गर्म करने से उसमें एच एन ई नामक बहुत ही टॉक्सिक पदार्थ बनता है। यह ऐथेरोस्कलेरोसिस, स्ट्रोक, पार्किसन, एल्जाइमर और यकृत रोग आदि का जनक माना जाता है।
इसके विपरीत संतृप्त वसा होने के कारण घी, मक्खन और नारियल के तेल को गर्म करने पर ऑक्सीकरण नहीं होता है इसलिए गर्म करने पर उनमें एच एन ई नहीं बनता है।
शुद्ध तेल - रिफाइंड तेल, डबल रिफाइंड तेल, ट्रिपल रिफाइंड तेल, डालडा, वेजीटेबल तेल मत खाइये। जो आपकी तासीर को सूट करे वही तेल खाइये।
वैज्ञानिकों ने खाने वाले तेल को दो भागों में बांटा है। समूह ए में सरसों और सोयाबीन के तेल हैं, जिनमें ओमेगा 3 पाया जाता है और समूह बी में सूरजमुखी, मूंगफली जैसे तेल रखे गए हैं, जिनमें ओमेगा 6 होता है। यदि आप बदल-बदल कर तेल इस्तेमाल करेंगी तो ओमेगा 3 और ओमेगा 6 दोनों की जरूरतें पूरी हो जाएंगी।
सरसों के तेल में मोनो अनसैचुरेटेड फैटी एसिड व पॉली अनसैचुरेटेड फैटी एसिड अधिक मात्र में होते हैं। कोलेस्ट्रॉल व एलडीएल कम होता है। इस तेल में तले खाद्य पदार्थ सेहत के लिए अच्छे हैं। पर हमेशा इसका उपयोग न करें। यह दिल की बीमारियां होने की आशंका 70 प्रतिशत कम कर देता है। इसमें विटामिन ई अच्छी मात्र है।
सोयाबीन का तेल :- मध्य भारत में इस तेल का सबसे अधिक इस्तेमाल किया जाता है। यह शरीर में एलडीएल और एचडीएल में संतुलन बनाकर रखता है, पर तलने के लिए यह उपयुक्त तेल नहीं है।
मूंगफली और तिल में मिलने वाला तेल HDL बढ़ता है। अतः इससे बिल्कुल भी डरना नहीं चाहिए। मोटापा VLDL और LDL बढने से होता है अर्थात जब HDL बढ़ेगा तो LDL और VLDL कम होने लगेगा जिसके कारण मोटापा कम होने लगेगा और पेट अंदर चला जायेगा।
सूरजमुखी का तेल :- सूरजमुखी के तेल में किसी अन्य खाना पकाने के तेल की तुलना में अधिक विटामिन ई होता है। इसलिए आप अपने आहार में इस तेल को शामिल कर के अस्थमा जैसी बीमारी से बच सकते है।
तेल न सिर्फ शरीर को एनर्जी प्रदान करता है, बल्कि फैट में अवशोषित होने वाले विटामिन जैसे- के, ए, डी, ई के अवशोषण में भी सहायक होता है। ये प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट के चयापचय को तेज कर इसके पाचन में मदद करता है।
लेकिन ये भी सच है की तेल के सेवन में हमारी कुछ गलतियों की वजह से ही हृदय रोग, एनीमिया, स्ट्रोक, पार्किसन, यकृत रोग और फेफड़ों के कैंसर आदि रोग होने की संभावना हो जाती है। आइये जानते है कैसे? लेकिन इससे पहले हम जानेंगे तेल के फायदे।


तेल के फायदे
तेल शरीर के त्रिदोषो में से एक, वात को समभाव में रखने की सबसे अच्छी वस्तु है जिसमें आप सब्जियां बनाते है। इसके अलावा तेल में प्रोटीन बहुत होता है। लेकिन तेल का मतलब शुद्ध तेल यानी तेल की घानी से निकाला हुआ सीधा-सीधा तेल। जो तेल मीलों में मिकलने के बाद मिलता है, वह शुद्ध तेल है। बिना कुछ मिलाये हुए।
वात के कुल 80 रोग है जैसे- घुटनों का दर्द, कमर का दर्द, गर्दन का दर्द, जोड़ो का दर्द। शुद्ध तेल खाने से लीवर में HDL वनता है, जो शरीर के लिए आवश्यक होता है। HDL ही वात को नियंत्रित करता है।
रिफाइंड तेल पिछले 20-25 वर्षो पहले से आये हैं। रिफाइंड, डबल रिफाइंड, ट्रिपल रिफाइंड तेल खाना जहर खाने के बराबर है। तेल को रिफाइंड करते समय तेल की चिकनाई निकाल ली जाती है। वैज्ञानिकों के अनुसार तेल का चिपचिपापन तेल का सबसे महत्वपूर्ण घटक है। जिस तेल में चिपचिपापन नहीं होता है, वह तेल नहीं होता है।
क्यों न खाए रिफाइंड तेल
तेल की चिकनाई या चिपचिपापन और उससे आने वाली धाँस तेल का ऑर्गेनिक घटक है। तेल को रिफाइंड की प्रक्रिया के दौरान ये घटक तेल से निकल जाते है। तेल में कुल 5 तरह के प्रोटीन होते है जो बास (तेल की) निकलने के साथ ही तेल से गायब हो जाते है। ये दोनों चीजें निकलने के बाद तेल, तेल नहीं होता है पानी हो जाता है। इसलिए शुद्ध तेल ही खायें।
चिकनाई खायें लेकिन देख कर खायें कि कौन सी खाने लायक है और कौन सी खाने लायक नहीं है। चिकनाई दो प्रकार की होती है, एक अच्छी और एक बुरी। अच्छी चिकनाई ज्यादा खायें। अच्छी चिकनाई शरीर में HDL बढाती है। जो बुरी चिकनाई है वह बढाती है LDL और VLDL, ये खतरना है। अच्छी चिकनाई नहीं खाने से शरीर चूसे हुए आम की तरह हो जाता है। चिकनाई नहीं खाने से शरीर की चमक चली जाती है। शुद्ध तेल में अच्छी चिकनाई मिलती है।
तेल की चिकनाई जब एक बार निकल जाती है तो वह रिफाइंड तेल होता है। दो बार निकालने पर डबल और तीन बार निकलने पर ट्रिपल हो जाता है।
रिफाइंड तेल गंध व स्वाद रहित क्यों होता है?
रिफाइंड तेल स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक है। रिफाइंड करने के लिए तिलहन को 200-500 डिग्री सेल्सेयस के बिच कई बार गरम किया जाता है और घटक पैट्रोलियन उत्पाद ‘हेग्जेन का प्रयोग बीजों से 100% तेल निकलने के लिए किया जाता है तथा कई घातक रसायन कास्टिक सोड़ा, फोसफेरिक एसिड, ब्लीचिंग क्लेंज आदि मिलाए जाते है ताकि निर्माता हानिकारक व खराब बीजों से भी तेल निकाले तो उपभोक्ता को उसको पता न चले। इसीलिए रिफाइंड तेलों को गंध रहित, स्वाद रहित व पारदर्शी बनाया जाता है।क्यों रिफाइंड तेल है जहरीला ?
किसी भी तेल को रिफाइंड करने के लिए 6-7 केमिकल इस्तेमाल होते है। डबल रिफाइंड करने में 12 से 13 केमिकल इस्तेमाल होते है। ये सारे केमिकल मनुष्य के द्वारा बनाये हुए इनआर्गेनिक केमिकल है। इनऑर्गेनिक केमिकल ही जहर बनाते है। आधुनिकता के नाम पर प्रयोग किये जाने वाले ये केमिकल सभी के शरीर में जहर बनकर उतर रहा है।इसके अलावा तेल को 200 डिग्री से 225 डिग्री पर आधे घंटे तक गर्म करने से उसमें एच एन ई नामक बहुत ही टॉक्सिक पदार्थ बनता है। यह ऐथेरोस्कलेरोसिस, स्ट्रोक, पार्किसन, एल्जाइमर और यकृत रोग आदि का जनक माना जाता है।
इसके विपरीत संतृप्त वसा होने के कारण घी, मक्खन और नारियल के तेल को गर्म करने पर ऑक्सीकरण नहीं होता है इसलिए गर्म करने पर उनमें एच एन ई नहीं बनता है।
अलग-अलग तेल खानें का नियम
जहाँ तक जैतून के तेल (Olive Oil) की बात है। आज विज्ञापनों द्वारा ये भारत में लोकलप्रिय हो रहा है। ज्यादातर विदेशो में इस तेल का इस्तेमाल किया जाता है। इसमें कोई शक नहीं कि तेल अच्छा है लेकिन क्या हम भारतीयों लिए भी उतना ही फायदेमंद है? हेल्थ एक्सपर्ट की मानें तो तेल चुनते समय इस बात का ख्याल रखना चाहिए कि आप जहां रहते हैं, वहां की जलवायु कैसी है और वहां कौन-कौन से परंपरागत तेलों का उपयोग किया जाता है।भारत के हर इलाके की भौगोलिक परिस्थितियां भी अलग-अलग हैं। यही वजह है कि हर स्थान का अलग खानपान होता है, जो वहां के मौसम के अनुकूल होता है। खाने के तेल पर भी ये बातें लागू होती हैं। एक्सपर्ट्स कहते हैं, अगर कुछ बातों को छोड़ दें तो हर तेल में कुछ औषधीय गुण होते हैं, इसलिए तेल का चुनाव करते वक्त शरीर की जरूरतों का ध्यान रखना बेहद जरूरी होता है।
बर्फीले इलाकों तथा पहाड़ी इलाके में रहने वालों के लिए तिल का तेल अच्छा होता है। नारियल, सरसों, तिल, मूंगफली के मिल में डालने के बाद जो सीधा तेल निकलता है, वह शुद्ध तेल होता है।
मैदानी इलाकों में रहने वालो के लिए सरसों का तेल तथा समुद्र के किनारे रहने वालो के लिए नारियल का तेल अच्छा होता है। शुद्ध तेल से वात का कोई रोग नही होता है।
ब्रह्मचर्य का जीवन जीने वालें के लिए सबसे अच्छा गाय का घी, इसके बाद तिल तेल, इसके बाद मूंगफली का तेल, फिर नारियल का तेल, इसके बाद सरसों के तेल का खाना अच्छा होता है। गृहस्थ लोगों के लिए तासीर के हिसाब से तेल का सेवन करना चाहिए।
ब्रह्मचर्य का जीवन जीने वालें के लिए सबसे अच्छा गाय का घी, इसके बाद तिल तेल, इसके बाद मूंगफली का तेल, फिर नारियल का तेल, इसके बाद सरसों के तेल का खाना अच्छा होता है। गृहस्थ लोगों के लिए तासीर के हिसाब से तेल का सेवन करना चाहिए।
शुद्ध तेल - रिफाइंड तेल, डबल रिफाइंड तेल, ट्रिपल रिफाइंड तेल, डालडा, वेजीटेबल तेल मत खाइये। जो आपकी तासीर को सूट करे वही तेल खाइये।
क्यों सरसों का तेल है बेहतरीन
सरसों का तेल पूरे भारत में खास तौर से उत्तरी भारत में खाना पकाने का सबसे पंसदीदा तेल हैं। इसमें कोई शक नहीं है कि सरसों का तेल भोजन पकाने के लिए बेहतरीन होता है। सरसों के बीज से निकला तेल खाने पकाने के लिए प्राचीन काल से ही उपयोग किया जाता रहा है। हमारे पूर्वज इसका इस्तेमाल करते थे। यह तेल उनके जींस में समा चूका है उनके शरीर का विकास ही इस तेल के अनुकूल हुआ है इसीलिए सरसों का तेल हमारे लिए भी फायदेमंद है। लेकिन अगर कुछ नियमों का न रखा जाये तो इस तेल से कैंसर तक हो सकता है।
सरसों के तेल के सेवन का नियम
सरसों तेल में अन्य खाना पकाने के तेल के मुकाबले सैचुरेटेड फैट कम होता है। एंटीऑक्सीडेंट की मौजूदगी और कोलेस्ट्रॉल को कम करने के गुणों की वजह से यह तेल स्वास्थ्य के लिए बहुत फायदेमंद होता है। लेकिन इसके इस्तेमाल से पहले आपको इसे अच्छे से जला लेना चाहिए। क्योंकि सरसों के तेल में इरूसिस नामक एसिड दिल में ट्राइग्लिसराइड्स के संचय, हृदय, एनीमिया और फेफड़ों के कैंसर के फिब्रिओटिक घावों के विकास के रूप में स्वास्थ्य के जोखिम से जुड़ा होता है।
नवीनतम वैज्ञानिक शोध के अनुसार तेल सेवन के नियम
नवीनतम वैज्ञानिक शोध के अनुसार बदलते रहे तेल। हैदराबाद के नेशनल इंस्टीटय़ूट ऑफ न्यूट्रिशन के वैज्ञानिकों ने एक शोध किया। इस शोध का निष्कर्ष निकाला कि लगातार एक ही तेल का सेवन नहीं करना चाहिए।थोड़े-थोड़े समय के अंतराल पर तेल बदलते रहना चाहिए। इससे दिल की बीमारियां, मोटापा, शुगर व तेल के कारण होने वाली अन्य बीमारियों की आशंका कम हो जाती है और अलग-अलग तेल में अलग-अलग पोषक तत्व होते जो शरीर की संतुलित पोषण में अहम भूमिका निभाते है।
वैज्ञानिकों ने खाने वाले तेल को दो भागों में बांटा है। समूह ए में सरसों और सोयाबीन के तेल हैं, जिनमें ओमेगा 3 पाया जाता है और समूह बी में सूरजमुखी, मूंगफली जैसे तेल रखे गए हैं, जिनमें ओमेगा 6 होता है। यदि आप बदल-बदल कर तेल इस्तेमाल करेंगी तो ओमेगा 3 और ओमेगा 6 दोनों की जरूरतें पूरी हो जाएंगी।
ओमेगा 3 वाले तेल के फायदे सरसों का तेल :-
सरसों के तेल :- इसका प्रयोग करने से कोरोनरी हार्ट डिसीज का खतरा भी कम होता है। यह शरीर में पाचन तंत्र को दुरुस्त करने का काम करता है। साथ ही साथ अगर भूख न लगे तो खाना बनाने में सरसों के तेल का उपयोग लाभप्रद होता है। इसमें विटामिन इ होता है जो त्वचा के लिए लाभ दायक है। इससे साइयों, झुरियों से राहत मिलती है और यह त्वचा को अल्ट्रावाइलेट किरणों और पॉलुशन से भी बचता है।
सरसों के तेल में मोनो अनसैचुरेटेड फैटी एसिड व पॉली अनसैचुरेटेड फैटी एसिड अधिक मात्र में होते हैं। कोलेस्ट्रॉल व एलडीएल कम होता है। इस तेल में तले खाद्य पदार्थ सेहत के लिए अच्छे हैं। पर हमेशा इसका उपयोग न करें। यह दिल की बीमारियां होने की आशंका 70 प्रतिशत कम कर देता है। इसमें विटामिन ई अच्छी मात्र है।
सोयाबीन का तेल :- मध्य भारत में इस तेल का सबसे अधिक इस्तेमाल किया जाता है। यह शरीर में एलडीएल और एचडीएल में संतुलन बनाकर रखता है, पर तलने के लिए यह उपयुक्त तेल नहीं है।
ओमेगा 6 वाले तेल के फायदे मूंगफली का तेल :-
मूंगफली के तेल में मोनो अनसैचुरेटेड फैट होते हैं। यह हमारे एलडीएल को कम करता है और गुड कोलेस्ट्रॉल के स्तर भी सामान्य रखता है। इसका प्रयोग तलने या कुकिंग में किसी भी तरह से किया जा सकता है।
मूंगफली और तिल में मिलने वाला तेल HDL बढ़ता है। अतः इससे बिल्कुल भी डरना नहीं चाहिए। मोटापा VLDL और LDL बढने से होता है अर्थात जब HDL बढ़ेगा तो LDL और VLDL कम होने लगेगा जिसके कारण मोटापा कम होने लगेगा और पेट अंदर चला जायेगा।
सूरजमुखी का तेल :- सूरजमुखी के तेल में किसी अन्य खाना पकाने के तेल की तुलना में अधिक विटामिन ई होता है। इसलिए आप अपने आहार में इस तेल को शामिल कर के अस्थमा जैसी बीमारी से बच सकते है।
इस तेल में मोनोअनसैचुरेटेड और पॉलीसैचुरेटेड फैट्स होते है। जो कि एक अच्छे फैट होते है। यह खराब कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करते है।
अतः हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे की खाना पकाने के लिए कभी भी रिफाइंड तेल का प्रयोग नहीं करना चाहिए। कच्ची घाणी से निकला तेल ही अच्छा होता है। कच्ची घाणी से निकला सरसों, नारियल और तिल के तेल का प्रयोग करना चाहिए। इसके अलावा मूंगफली का तेल अच्छा होता है।
अतः हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे की खाना पकाने के लिए कभी भी रिफाइंड तेल का प्रयोग नहीं करना चाहिए। कच्ची घाणी से निकला तेल ही अच्छा होता है। कच्ची घाणी से निकला सरसों, नारियल और तिल के तेल का प्रयोग करना चाहिए। इसके अलावा मूंगफली का तेल अच्छा होता है।
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