विद्यार्थी जीवन प्रतेक बच्चे के जीवन में निर्णायक भूमिका निभाता है। आज हम आयुर्वेद के अनुसार बच्चों या विद्यार्थियों के लिए आदर्श दिनचर्या जानेंगे।
दिनचर्या हर व्यक्ति के अपने शरीर के हिसाब से अलग-अलग हो सकती है। आयुर्वेद में उम्र की अवस्था के अनुसार दिनचर्या अलग-अलग बताई गई है। दिनचर्या का आधार मनुष्य के त्रिदोष (वात, पित्त और कफ) है। बचपन यानि जन्म के पहले दिन से 14 साल तक के समय में कफ का प्रभव अधिक होता है। उस समय वात और पित्त, कफ की तुलना में बहुत कम होता है। इसलिए बचपन की दिनचर्या के अधिकांश नियम कफ को नियंत्रित करने वाले है।
बच्चों व कफ की अधिकता वाले लोगों के लिए कफ को जानना व समझना बहुत लाभ प्रद होगा। तो आइये कफ के माध्यम से बचपन की दिनचर्या को समझे है।
हृदय से उपर मस्तिष्क तक कफ का क्षेत्र है। हृदय से निचे नाभि तक पित्त का क्षेत्र है। नाभि से निचे पूरा वात का क्षेत्र है। बच्चों के ज्यादातर रोग छाती के उपर वाले (कफ) ही होंगे, जैसे- नाक बहेगी, जुकाम होगा, खासी होगी ये सब कफ के रोग है।
बचपन की दिनचर्या के अंतर्गत इस लेख में आप पढ़ेंगे:-
- कफ के परिणाम
- पढ़ाई में मन न लगना
- नींद का नियम
- खान-पान का नियम
- तेल मालिश का नियम
- स्नान का नियम
- अन्य महत्वपूर्ण बिंदु
कफ बिगड़ने के मनोवैज्ञानिक परिणाम
कफ अधिक बिगड़ जाने से मन नियंत्रित नहीं होता है जिसके कारण ऐसा व्यक्ति कोई भी अपराध कर सकता है। कफ के असर में प्रेम बहुत पैदा होता है। अतः कफ प्रेम भी पैदा करता है और क्रोध भी पैदा करता है। कफ जब तक नियंत्रण में है तब तक प्रेम सद्भाव पैदा करेगा और यही नियंत्रण के बाहत हो जाता है तो व्यक्ति के स्वभाव को खतरनाक बना देता है।
अमेरिका में 60% अपराध बच्चे क्यों कर रहे है?
अमेरिका की कुल आबादी 27 करोड़ है, और इसमें से 3 करोड़ के करीब बच्चे हैं। इस तीन करोड़ बच्चो में 30 लाख बच्चे जेल में बंद है। ये बच्चे 10, 11, 12, साल या इसके आस-पास के है। ऐसी ही स्थिति कनाड़ा, ब्रिटेन, फ्रांस, स्वीडेन, स्वीटजरलैंड की है। इन देशों के 65 से 60 प्रतिशत अपराध बच्चे करते है, अपराध चाहे जो हो। अतः यहाँ के बच्चे का कफ बिगड़ा हुआ होता है।
पढ़ाई में मन न लगना
सीखने की सबसे ज्यादा अनुकूल उम्र 14 वर्ष तक की मानी गयी है। शारीर की प्रकृति और अवस्था के हिसाब से कफ के असर में पढ़ाई नहीं हो सकती है, पढ़ाई पित्त के असर में अधिक होती है अर्थात पित्त बढ़ना चाहिए और कफ कम होना चाहिए।
दिन के हिसाब से सुबह का समय कफ का समय है, इस समय नींद अधिक आयेगी लेकिन इसके साथ ही सोकर उठने के बाद कफ शांत होता है। अतः इस समय कफ प्रभावित लोगों की पढ़ाई बहुत अच्छी हो सकती है। ऐसा प्रकृति का नियम है। बच्चों को डाँटना और मरना नहीं चाहिए क्योंकि कफ प्रकृति से विद्रोही स्वभाव की होती है। वैसे भी आज के समय की स्कूली शिक्षा का 90 प्रतिशत हिस्सा किसी के कोई काम नहीं आता है। इसलिए बच्चों के व्यवहारिक/क्रियात्मक ज्ञान के विकास पर अधिक ध्यान देना चाहिए।
हम जनते है कि दुनिया के सभी महान वैज्ञानिकों का स्कूली शिक्षा का सफर अच्छा नहीं था अर्थात अपने जीवन की स्कूली पढ़ाई में ज्यादातर वैज्ञानिक फेल हो चुके थे। न्यूटन 8वीं आइन्स्टीन 9वीं फेल थे।
कफ को संतुलित करने के तरीके (बचपन की दिनचर्या)
कफ जितनी बड़ी समस्या है उनको नियंत्रित रखना उतना ही आसन भी है। कफ को नियंत्रित रखने का सबसे अच्छा तरीका भरपूर नींद लेना है। कफ चिकना और भारी होता है। भारी वस्तुएं शरीर का रक्त दबाव बदती है। ऐसा भारी वस्तुओं के अधिक गुरुत्व के कारण होता है। भारी वस्तुओं में गुरुत्व अधिक होता है। इसलिए कफ की स्थिति में अधिक सोना चाहिए क्योंकि नींद लेते समय शरीर का रक्त दबाव हमेशा कम होता है।सोते समय रक्त दबाव या तो सामान्य या सामान्य से कम होता है और जागने की स्थिति में रक्त दबाव सामान्य या सामान्य से थोड़ा ज्यादा होता है। इसलिए बच्चों को सूर्यास्त के दो घण्टे के अंदर सो जाना चाहिए। ऐसे बच्चों को टी० वी० से दूर रखकर किया जा सकता है। बिगड़ा हुआ कफ बच्चों को चिडचिडा बनता है जिससे गुस्सा अधिक आता है।
आधुनिक शोध ने भी ये सिद्ध किया है। ब्रिटेन की एक ताज़ा शोध कहती है कि अगर बच्चे रात को देर से सोते हैं तो इससे उनके दिमाग़ पर असर पड़ सकता है। जिन बच्चों को समय से पहले सुला दिया गया हो उनका दिमाग ज्यादा तेज़ चलने वाला पाया गया है और देर से सोने वाले बच्चे पढ़ाई में कमजोर हो जाते है।
कफ मोटापे का भी कारण बनती है। अमेरिका के ओहाओ में हुए एक अन्य शोध के मुताबित अगर प्री-स्कूली बच्चें हर दिन नियमित समय पे खेल-कूद, भोजन व नींद नही लेते है तो स्वास्थ्य समस्याएं होती है। 11 साल की उम्र तक आते आते ऐसे बच्चो में मोटापे के लक्षण पाए गये, अर्थात बच्चों को जल्दी सोना व जल्दी उठाना चाहिए।
पहले दिन से 4 वर्ष तक के बच्चों को कम से कम 16 घण्टे की नींद लेनी चाहिए। 4 वर्ष से 8 वर्ष तक के बच्चों को 12 से 14 घण्टे तक की नींद लेनी चाहिए। 8 वर्ष से 14 वर्ष तक के बच्चों के लिए 8 से 10 घण्टे सोना भी अनुकूल ही माना गया है। यही नींद यदि दो हिस्सों में लें तो बहुत अच्छा होगा। यानि रात में 8 घण्टे तक सो जाएं और दिन में 2 घण्टे तक सो जाएं।
2. खान-पान का नियम :-
कफ के प्रभाव की स्थिति में खान-पान में दूध सबसे आवश्यक वस्तु है। दूसरी वस्तु है मक्खन, तीसरी वस्तु घी उसके बाद तेल, उसके बाद है मठ्ठा, उसके बाद गुड़ है। ये सब कफ को शांत करते है।
गुड़ के साथ बच्चों को तिल, मुगफली आदि वस्तुएं जरुर खिलाना चाहिए। ये सारी वस्तुएं रोज के खान-पान में होनी चाहिए। ये सारी वस्तुएं भारी है और भारी वस्तुएं कफ को संतुलित रखने में मदद करती है। मैदा या मैदे की बनी हुई कोई भी वस्तु बच्चों को कभी नहीं खिलाना चाहिए। क्योंकि मैदे की चीजें कफ को बिगड़ने वाली होती हैं।
12 से 14 बजे के बीज में पित्त बढ़ता है। इस समय घी की बनी हुई बस्तुएं ज्यादा खिलाना चाहिए। शाम को वात को कम करने वाली चीजें ही खिलाएं।
3. नियमित तेल मालिश :-
कफ के प्रभाव को संतुलित करने के लिए नींद के बाद दूसरी चीज है बच्चों की तेल मालिस। अतः बच्चों की रोज तेल मालिश होनी ही चाहिए। तेल मालिश शरीर से कफ वाले हिस्से में अधिक करना है। वैसे तो पुरे शारीर में करना चाहिए लेकिन बच्चों की सिर की मालिश अधिक करें, धीरे-धीरे तेल के साथ करें। जिससे तेल सिर में छोटे-छोटे छिद्रों के माध्यम से शरीर में प्रवेश करेगा और कफ का नाश करेगा, क्यंकि तेल कफ नाशक है। मालिश करते समय जब उनके बगल में (शरीर पर) पसीना आ जाय तो मालिश रोक दें। माथे पर पसीना आने पर भी मालिश रोक देनी चाहिए।
दूसरा कफ का मुख्य स्थान सिर के बाद कान है अर्थात कान की भी मालिश रोज होनी चाहिए तेल से और थोड़ा-थोड़ा तेल कानों में लगाना चाहिए जिससे कि कफ शांत हो सके। तीसरे नम्बर पर आँखे कफ का सबसे बड़ा केंद्र है। आँखों के ज्यादा रोग कफ के रोग है। जैसे- कैटरेक्त, मोतिया बिन्द, ग्लुकोमा, आँखों का लाल होना ये सब कफ के रोग है।
देशी गाय का घी बच्चों की आँखों में डाल सकते हैं या लगा सकते है। तेल आँखों में नहीं डालना चाहिए। देशी गाय के घी भी उपलब्धता नहीं होने पर आँखों में काजल लगाया जा सकता है। काजल मतलब कार्बन, कार्बन कफ को शांत करने में बड़ी भूमिका निभाता है। काजल (सौव्यीर अंजन) बनने में गाय का घी, गाय का दूध, दारू हल्दी ऐसी ही 5-7 वस्तुएं प्रयोग में लायी जाती है।
4. स्नान का नियम :-
शारीर की तेल मालिश हमेशा स्नान करने से पहले होनी चाहिए। नहाते समय कफ को कम करने वाली वस्तुओं का प्रयोग करना चाहिए। जैसे- चने का आटा, चन्दन की लकड़ी का पाउडर, मसूर की दाल का आटा, कोई भी मोटा आटा, मुंग की दाल का आटा अर्थात बच्चों का स्नान इन्ही से कराएं तथा साबुन न लगायें। साबुन सोडियम आक्साइड यनी कास्टिक सोडा से बनता है, जो कि कफ को भड़काने वाली वस्तु है। अतः साबुन कभी भी न लगाएं। मुल्तानी मिटटी से भी स्नान कर सकते है। उबटन लताएँ, साबुन और आँखों की बहुत ही गहरी दुश्मनी है। अतः इसका प्रयोग बिलकुल भी न करें।
5. न करें व्यायाम :-
बच्चों को, कफ की अधिकता वाले लोगों को या जिनका कफ बढ़ा हुआ हो उनको व्यायाम नहीं करना चाहिए। जैसे- प्राणायाम योग आसन आदि। व्यायाम, प्राणायाम या योग उनके लिए बहुत अच्छा है जो पित्त के प्रभाव में है। वात के प्रभाव वालों को बहुत मामूली व्यायाम करना चाहिए।
6. अन्य महत्वपूर्ण बिंदु :-
कफ के प्रभाव वालों की कल्पनाशीलता सबसे ऊँची होगी। बच्चों पर कहानियों का असर बहुत पड़ता है, अतः बच्चों को जैसा बनाना हो उनको वैसे ही लोगों की कहानियाँ सुनानी चाहिए। बच्चो के पास शब्दकोश की कमी होती है लेकिन जिनका कफ संतुलित होता है उनकी कल्पनाशीलता किसी भी सामान्य व्यक्ति से अधिक होता है। जितनी लम्बी कहानियाँ होंगी, उतनी ही रचनात्मक बच्चे होंगे। बच्चों के सवालों के जबाव हमेश ईमानदारी से दें। गलत उत्तर देने से बच्चों में एक समय के बाद आदर भाव की कमी होने लगती है। बच्चों को पढने के लिए चंदा मामा, अमर चित्र कथा, नन्दन जैसी पत्रिकाएँ अवश्य लेनी चाहिए।

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