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परस्पर विरुद्ध आहार और उसके दुष्परिणाम

परस्पर विरुद्ध आहार और उसके दुष्परिणाम


परस्पर विरुद्ध आहार और उसके दुष्परिणाम

आज हम जानेंगे कौन सी दो या अधिक वस्तुएं साथ में नहीं खानी चाहिए। भोजन के नियम में ये बहुत जरूरी है कि खाने में दो बिरुद्ध बस्तुएं एक साथ कभी न खायें, जिनका गुण और दोष एक दुसरे के विरुद्ध हो। शास्त्रों के अनुसार हमारे भोजन में 9 गुण होते हैं।

  • वर्ण: भोजन की रंगत।
  • प्रसाद: भोजन को देखने और खाने से अनद की अनुभूति होना।
  • सुखम: आरामदायक और पुष्टि प्रदायक गुण।
  • संतुष्टि: भोजन ग्रहण करने के पश्चात संतुष्टि का अनुभव होता है।
  • सौस्वरयम: आपको हैरानी होगी लेकिन भोजन में भी लयात्मकता होनी चाहिए। हर शाख के साथ प्रयोग होने वाले उचित मसाले होते हैं या भोजन को पकने की विधि का तदात्मय भी आवश्यक है।
  • पुष्टि: भोजन द्वारा पुष्टि की प्राप्ति।
  • प्रतिभा: कौशल या योग्यता में कितनी वृद्धि करता है।
  • मेध: बुद्धि।
  • बल: रोग प्रतिकारक शक्ति और पुष्टि।
यदि भोजन में इन गुणों का अवरोध या विरोध पाया जाए तो उसे विरुद्धाहार कहा जाता है। भोजन के इन गुणों का सही समन्वय, सामंजस्य और पूर्ति होने से ही एक संतुलित आहार बनता है। ये देखने और खाने में तो रुचिकार होता ही है साथ ही साथ सुपाच्य और पुष्टिवर्धक भी होता है।

18 प्रकार के विरुद्ध आहार

भोजन 18 प्रकार से विरुद्ध हो सकता है और कुल 103 वस्तुएं है जो एक-दुसरे के विल्कुल खिलाफ हैं। जैसे प्याज और दूध। दूध और प्याज एक साथ खाने से कम से कम 20 बीमारियां आयेंगी जिसमें त्वचा की बीमारियां ज्यादा होंगी। सोराइसिस, एग्जिमा, खाज, खुजली जैसी विमारियां अधिक होंगी। 

1. देश विरुद्ध: स्थानीय पदार्थों का सेवन न करना जैसे- मरुभूमि में रुक्ष, उषण, तीक्षण पदार्थों (अधिक मिर्च, गर्म मसाले आदि) व समुद्रतटीय प्रदेशों में चिकने-ठंडे पदार्थों का सेवन, क्षारयुक्त भूमि के जल का सेवन देशविरुद्ध है। 

2. काल विरुद्ध: सीजनल खाद्य वस्तुओ का सेवन न करना जैसे- हेमंत व शिशिर इन शीत ऋतुओं में ठंडे, रुखे-सूखे, वातवर्धक पदार्थों का सेवन, अल्प आहार तथा वसंत-ग्रीष्म-शरद इन उषण ऋतुओं में उषण पदार्थं व दही का सेवन कालविरुद्ध है। 

3. अग्नि विरुद्ध: मध्यम जठराग्नि वाले व्यक्ति का गरिष्ठ भोजन खाना। 

4. मात्रा विरुद्ध: साथ में खा सकने वाली वस्तुए गलत मात्रा में खाना जैसे- शहद, घी, तेल व पानी इन चार द्रव्यों में से दो अथवा तीन द्रव्यों को समभाग मिलाकर खाना हानिकारक हैं।

5. सात्मय विरुद्ध: शारीर की प्रवृत्ति के विरुद्ध भोजन करना। 

6. दोष विरुद्ध: शरीर के दोष को बढ़ाने वाला भोजन करना। 

7. संस्कार विरुद्ध: भोजन को अनुचित ढंग से पकाना जैसे दही अथवा शहद को अगर गर्म कर लिया जाए तो ये पुष्टि दायक होने की जगह घातक विषैले बन जाते हैं। 

8. कोष्ठ विरुद्ध: कोष्ठबद्धता एक रोग है जो ज़्यदातर ठंडा पानी पिने से सोता है अधिक जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें। कोष्ठबद्धता का व्यक्ति का हल्का, थोड़ी मात्रा में और कम मल बनाने वाला भोजन न खाना या इसके विपरीत करना। 

9. वीर्य विरुद्ध: गर्म तासीर की वस्तुओ को ठंडी तासीर की वस्तुओ के साथ लेना। 

10. अवस्था विरुद्ध: जैसे अधिक परिश्रम करनेवाले व्यक्तियों के लिए रुखे-सूखे, वातवर्धक पदार्थ व कम भोजन तथा बैठे-बैठे काम करनेवाले व्यक्तियों के लिए चिकने, मीठे, कफवर्धक पदार्थ व अधिक भोजन अवस्थाविरुद्ध है। 

11. क्रम विरुद्ध: गलत समय पर भोजन करना जैसे- मल, मूत्र का त्याग किये बिना, भूख के बिना अथवा बहुत अधिक भूख लगने पर भोजन करना क्रमविरुद्ध है।

12. परिहार विरुद्ध: जो चीज़ें व्यक्ति को वैद्य के अनुसार नही खानी चाहिए, उन्हें खाना-जैसे कि जिन लोगों को दूध ना पचता हो, वे दूध से निर्मित पदार्थों का सेवन करें। 

13. उपचार विरुद्ध: किसी विशिष्ट उपचार- विधि में ना खाने योग्य पदार्थ का सेवन करना। 

14. पाक विरुद्ध: अधकच्चा, अधिक पका हुआ, जला हुआ, बार-बार गर्म किया गया, उच्च तापमान पर पकाया गया (जैसे-ओवन व प्रेशर कुकर में बना), अति शीत तापमान में रखा गया (जैसे-फिर्ज में रखे पदार्थ) भोजन पाकविरुद्ध है ।

15. संयोग विरुद्ध: दूध के साथ अम्लीय पदार्थों का सेवन। 

16. हृदय विरुद्ध: जो भोजन रुचिकार ना लगे उसे खाना क्योंकि अग्नि प्रदीप्त होने पर भी आहार मनोनुकूल न हो तो सम्यक पाचन नहीं होता। 

17. समपद विरुद्ध: रिफाइंड पदार्थ खाना क्योंकि शुद्धीकरण या रेफाइनिंग करने की प्रक्रिया में पोषक तत्व भी निकल जाते हैं। 

18. विधि विरुद्ध: सार्वजनिक स्थान पर बैठकर भोजन खाना। 

इस प्रकार के विरोधी आहार के सेवन से बल, बुद्धि, वीर्य व आयु का नाश, नपुंसकता, अंधत्व, पागलपन, भगंदर, त्वचाविकार, पेट के रोग, सूजन, बवासीर, अम्लपित्त (एसीडिटी), सफेद दाग, ज्ञानेन्द्रियों में विकृति व अषटोमहागद अथार्त आठ प्रकार की असाध्य व्याधियाँ उत्पन होती हैं। विरुद्ध अन्न का सेवन मृत्यु का भी कारण हो सकता है। 

विरुद्धाहार के कुछ उदाहरण

गुड़ और घी साथ में जरुर खांए। दो विरुद्ध आहारों के बीच कम से कम डेढ़ घण्टे का अंतर होना चाहिए।  

  • औषधि
आयुर्वेदिक दवाओं के साथ अंग्रेजी दवाएं नहीं लेना चाहिए, नहीं तो इसके परिणाम खराब हो सकते हैं। 

  • दूध और दही 
दो विरोधी वस्तुएं जैसे दूध और दही साथ में नहीं खा सकते है। दूध और दही की बनाई हुई कोई भी वस्तु साथ में न खायें। क्योंकि दोनों की प्रकृति अलग है। कढ़ी और खीर एक साथ नहीं खा सकते है। 

  • जन्म संस्कार
शहत और घी में गाय का मूत्र या उसके गोबर का रस मिलाकर कहीं-कहीं बच्चों के जन्म के संस्कार के समय दिया जाता है लेकिन ऐसा नहीं करना चाहिए। बच्चों को यदि चटाना है तो खाली घी अथवा शहद चटायें। 

  • शहद और घी
शहद और घी एक साथ न खायें। ये दुनिया का सबसे खराब जहर है। किसी ऐसी स्थिति में जिसमें विष दवा का कार्य करता है तो ऐसी स्थिति में बच्चों को घी और शहद एक साथ दे सकते हैं। जैसे कुछ बच्चों को पैदा होने के बाद उनका शरीर तेजी से तांबे के रंग में बदलने लगता है तो ऐसी अवस्था में उस बच्चे को घी और शहद मिलाकर अवश्य देना चाहिए। लेकिन सामान्य वच्चे के लिए यह ठीक नहीं है। 

  • दाल और दही
द्विदल के साथ दही निषेध है। दाल के साथ दही की तासीर बदलकर खायें। तासीर बदलने के लिए जीरा + नमक/सेंध नमक + अजवाइन का छोंक/बघार दें। उसके बाद ही दही, मट्ठा या छाछ पियें। गरम भोजन और ठण्डी आइसक्रीम कभी न खायें। 

उड़द की डाल और दही कभी भी एक साथ न खायें। उड़द की दाल, दालों का रजा है। इसलिए इसे अकेला ही खायें। 6 या 8 महीने तक लगातार उड़द की दाल और दही खाने से हृदय घात जैसी बीमारियां हो सकती हैं। बड़ा यदि उड़द की दाल का है तो दही-बड़ा कभी न खायें। मुंग की दाल का बड़ा खा सकते है। लेकिन दही या खट्ठा जो भी हो, बघारा हुआ हो। उड़द की डाल का बड़ा चटनी से ही खा सकते हैं। 

माँ की दाल में सबसे ज्यादा प्रोटीन होता है। कोई भी एसिडिक चीज हाई प्रोटीन को पचने में रुकावट पैदा करती है। अतः उड़द की दाल अकेले खायें। यदि खाना जरूरी है तो डेढ़ घण्टे का अंतर रखें। 

  • दूध और खट्ठे फल
दूध और खट्ठे फल या उनके रस एक साथ कभी न खायें जैसे संतरा मौसंबी, अंगूर आदि। पके हुए मीठे आम के साथ दूध खा सकते है, सेव तथा गाजर खा सकते है। चीकू, केला दूध के साथ खा सकते हैं। 

  • दूध और कटहल
दूध और कटहल कभी न खायें। दोनों एक-दुसरे के जानी दुश्मन हैं। कटहल क्षारीय होते हुए भी निषिद्ध माना गया है। कटहल में प्रोटीन की मात्रा बहुत अधिक होती है, जिसे पचने के लिए आवश्यक है कि इसे अकेले खाए। 

  • दही और नमक
दही हमेशा मीठी चीजों के साथ खाना चाहिए, चीनी को छोड़कर। नमक के साथ दही कभी न खायें दही को जीवाणुओं के लिए खाया जाता है। दहीं करोड़ों जीवाणुओं का घर है। नमक डालने से दही के सारे जीवाणु मर जाते हैं, जिसके कारण दही के खाने का कोई फायदा नहीं होता है। 

  • दूध और नमक
दूध पीते हुए कोई भी नमक की चीज प्रयोग न करें या दूध की बनी कोई भी चीज नमक के साथ न खायें, सेंधा और काला नमक को छोडकर। 

  • गरम और ठण्डा
तासीर में गरम और उसके विपरीत ठण्डी दोनों चीजें एक साथ कभी न खायें। कुल्फी खां सकतें है, रबड़ी खा सकते हैं। कुल्फी थोड़ा गरम करके खायें या कुल्फी को धीरे-धीरे खाना चाहिए यानि कुल्फी दो थोड़ी देर मुँह में रखने के बाद खायें। गर्म व ठंडे पदार्थों को एक साथ खाने से जठराग्नि व पाचनक्रिया मंद हो जाती है।

अन्य महत्वपूर्ण  विरुद्ध आहार के नियम

  • गेहूँ को तिल तेल में पकाना।
  • फल खाने के फौरन बाद पानी नहीं पीना चाहिए, खासकर तरबूज और खरबूज खाने के बाद।  
  • दही, शहद अथवा मदिरा के बाद गर्म पदार्थों का सेवन। 
  • केले के साथ दही या लस्सी लेना। 
  • तांबे के बर्तन में घी रखना। 
  • मूली के साथ गुड़ खाना। 
  • मछली के साथ गुड़ लेना।
  •  तिल के साथ कांजी का सेवन। 
  • सलाद के साथ दूध का सेवन करना। मछली के साथ दूध पीना। 
  • खाने के एकदम बाद चाय पीना वैसे तो चाय पीनी ही नहीं चाहिए और भोजन के बाद चाय पीने से शरीर में आइरन की कमी आ जाती है। 
  • सलाद का सेवन मुख्य भोजन के बाद नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से सलाद को पचाना शरीर के लिए मुश्किल हो जाता है और गैस तथा एसिडिटी की समस्या उत्पन्न हो जाती है। भोजन के दोरान इसका सेवन कर सकते है लेकिन भोजन से पहले सलाद का सेवन सबसे अच्छा होता है।
  • दही के साथ उड़द, गुड़, काली मिर्च, केला व शहद और शहद के साथ गुड़ और घी के साथ तेल नहीं खाना चाहिए। इनके सेवन से लाभ की जगह हानि ही होती है।
  • रासायनिक खाद व इंजेकशन द्वारा उगाये गये आनाज व सब्जियाँ तथा रसायनों द्वारा पकाये गये फल भी स्वभावविरुद्ध हैं।


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