Svadeshi Blog स्वदेशी ब्लॉग

जवानी की दिनचर्या-पित्त को संतुलित रखने की आदर्श दिनचर्या

जवानी की दिनचर्या-पित्त को संतुलित रखने की आदर्श दिनचर्या

14 वर्ष से लेकर 60 सालों तक पूरा शरीर पित्त के प्रभाव में होता है। पित्त के लोगों का कफ कम हो जाता है और वात बहुत कम होता है। ऋतुओं का और दिन के चारो प्रहर का भी त्रिदोषों पर गहरा प्रभाव पड़ता है। वर्षा ऋतू में पित्त संचित होता है, शरद ऋतू में कुपित और हेमंत ऋतू में शांत। दोपहर में और किसी भी समय भोजन पचने के दौरान पित्त अपने जोर पर  रहता है। 

पिछले लेख में बचपन की दिनचर्या के अंतर्गत हमने कफ को संतुलित रखने की दिनचर्या के बारे में जाना था। इस लेख में हम जवानी की दिनचर्या अर्थात पित्त को संतुलित रखने की दिनचर्या जानेंगे। आयुर्वेद में सिर्फ दो बार ही भोजन का विधान है सूर्य अस्त होने के बाद भोजन वर्जित है। 

क्या है  पित्त ?

हृदय से निचे नाभि तक पित्त का क्षेत्र है। इसके बिगड़ने से 46-60 बीमारियाँ आती है। यह एक प्रकार का पाचक रस है लेकिन यह विष भी होता है। यह भोजन पचाने में सहायक तो होता ही है साथ आंतों में पहुंचकर यह खाद्य-पदार्थों को जल्द सड़ने से रोकता है। ऐसा नहीं होने से ही खाद्य-पदार्थ बहुत जल्द सड़कर गैस उत्पन्न करने लगते है जिससे पेट की कई समस्यातयें होने लगेंगी। इसकी अधिकता और निम्नता दोनों ही घातक है। 

शरीर में पित्त का संतुलन बहुत आवश्यक है। इसके लिए बेहतर होगा कि अपनी जीवनशैली में सुधार लायें। पित्त प्रकृति के लोगों की नींद 6 घंटें कम से कम और अधिक से अधिक 8 घंटें होनी चाहिए। सुबह समय पर उठकर व्यायाम करके ब्रेकफास्टे करें। खान-पान पर विशेष ध्यारन दें, भरपूर नींद लें।

पित्त के उपाय में लार अमृत

ब्रह्म महूर्त में पित्त प्रकृति के लोगों का जागना बहुत आवश्यक है अर्थात सुबह 4 बजे जग जायें। सुबह-सुबह की लार पित्त को संतुलित करने का रामबाण उपाय है। अतः सुबह बिना कुल्ला किये हल्का गन-गुना पानी पियें। दातून करते समय भी लार पेट में जाने देना चाहिए। पित्त प्रकृति के लोगों को दांत कसाय अथवा कड़वी और तिक्त वाली वस्तुओं से साफ करना चाहिए अथवा नींम की दातुन करें। 

दांत साफ करने के लिए मदार, बबूल, अर्जुन, आम, अमरुद आदि की दातुन करें। दंत मंजन के लिए बारीक त्रिफला चूर्ण पीसें और सेंध नमक मिलाकर करें। इसके अतिरिक्त गाय के गोबर की राख का दंत मंजन कर सकते है। पेस्ट का उपयोग न करे। जितना हो सके प्राकृतिक जीवन जिए। दाँत साफ करने के बारे में अधिक जानकारी के लिए यहां क्लिक करें।

व्यायाम का नियम

पित्त प्रकृति के लोगों को मालिश और व्यायाम दोनों करना चाहिए। वात के रोगियों के लिए मालिश पहले और व्यायाम बाद में। पित्त की प्रधानता वाले व्यक्तियों के लिए व्यायाम पहले मालिश बाद में। शरीर में बगल में पसीना आने पर व्यायाम बंद कर दें। भारत की जलवायु के हिसाब से यहाँ रोज सुबह-सुबह दौड़ना नहीं चाहिए क्योंकि दौड़ते समय वात बहुत प्रबल होता है। भारत वात प्रकृति का देश है। यानी रुक्ष देश है जहाँ सुखी हवा चलती है। 

ऐसे व्यायाम जो धीरे-धीरे किये जाते है जैसे भारत की प्रकृति के हिसाब से सूर्य नमस्कार जो सबसे अच्छा है इसके आलावा छोटे-छोटे स्तर के कोई भी व्यायाम जिसमें पसीना ना निकले। माताओं को व्यायाम की जरूरत नहीं है यदि वह रसोई घर के काम में लगी हैं। खास कर उनके लिए जो माताएं चक्की चलती है या सिल-बट्टे पर चटनी बनती हैं। बहनों के लिए बहुत अच्छा व्यायाम है कमर से आगे की तरफ झुकना, जितना झुक पायें, उतना ही झुकें। आटा चक्की और सिलबट्टा महिलाओं के लिए किसी वरदान से कम नहीं क्लिक करें और जाने।


स्नान का नियम

स्नान उबटन आदि से ही करना चाहिए। स्नान से पहले मालिश करें। माताओं और बहनों के लिए भी मालिश जरूरी है। शरीर के साथ-साथ सिर की कान की और तलवों की ज्यादा मालिश करनी है। साबुन कई प्रकार से त्वचा को नुकसान पहुँचता है, अतः इसे नहीं लगाना चाहिए।प्राकृतिक स्नान का तरीका विस्तार से जानने के लिए क्लिक करें।


सुबह का भोजन

स्नान के बाद भोजन करें। सूर्य उदय के 2 से ढाई घंटे के अंदर भोजन कर लेना सबसे अच्छा होता है। कडवे, नमकीन और खट्टे पदार्थ पित्त को बढ़ाने वाले होते है। मीठे, चरपरे और कसैले पित्तशामक है। आपने ये कहावत सुनी होगी ‘सुबह भोजन करो डटके दोपहर में सम्भलकर और रात में बचके’ अर्थात सुबह का भोजन सबसे हैवी होना चाहिए। 

यदि दोपहर में भूख लगे तो भोजन कर सकते है। लेकिन हल्का भोजन करें और रात में और हल्का। आज का हमारा लाइफ स्टाइल इसके ठीक विपरीत है हम सुबह ब्रेक फ़ास्ट बहुत हल्का करते है। लंच उससे हैवी होता है और डिनर रात के 8 या 9 बजे सबसे हैवी होता है। ये बहुत खतरनाक है। सभी बिमारिओं की जड़ है। तथा भोजन के बाद 20 मिनट का विश्राम या 10 मिनट बज्रासन। फिर दिन के कार्य-कलाप में लग जाएँ। 

आयुर्वेद के अनुसार भोजन करने का सही नियम


शाम का भोजन

इसके बाद शाम को 6-7 बजे के करीब सूर्य अस्त होने से 40 मिनट पहले भोजन कर लें। इस समय भी जठराग्नि सुबह की भांति ही तीव्र हो जाती है इसलिए इस समय भी आप पेट भर के भोजन करें, 10 मिनट बज्रासन में बैठने के बाद कम से कम 1000 कदम वाक करें फिर 2 घंटे बाद सोयें। यदि रात में भूख लग भी रही है तो सोने से पहले दूध पीये। भारत की जल वायु के अनुसार यह जवान लोगो के लिए आदर्श दिनचर्या है।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ